Friday, September 30

उदंड

कुछ उदंड सी सोच है
जो जन्म ले रही है मेरे मन में
और क्यों न ले
आखिर उदंडता बसती है इन रगों में.
अब इस सोच का क्या करू?
इसे मोड़ने की कोशिश बेकार है
बहुत जिद्दी है ये मेरी तरह
कुछ ठान कर जन्मी है
क्या मेरे इस सोच के उदंड होने का कारण मैं हूँ?
शायद मैं हीं हूँ
पर होगा क्या इसे सुधार कर,
बेहतर बना कर?
अपने पहचान से, अपनी कोशिशों से
अपने जन्म से - वो उदंड ही रहेगी मेरी तरह.

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