एक सुकून की तलाश में जिन्दगी यूँ तमाम हो गयी
हम न चाहते हुए भी गैरो के दामन भिगोते रहे
अपने तो कब के छोड़ गए तनहा इन राहों पर
हम इन गैरो में उन अपनों को तलाशते रहे
रास्ते पूछते हैं हमसे हमारी मंजिल का पता
हम उनसे कहते है कहीं तो मिलेगी हमारी रूह हमें
खून का हर कतरा बह चूका है इस जिस्म से
पर न चाहते हुए भी तलाश है अपनों की हमे
aaj padha maine....
ReplyDeleteBadhia hai..
Thnq Bhai...Jab jago tabhi savera :)
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